360LiveReport

360LiveReport


Your News, Your Voice!

जानिए Kalki 2898 AD की कहानी और उनसे जुड़े तथ्यों के बारे में

जानिए Kalki 2898 AD की कहानी और उनसे जुड़े तथ्यों के बारे में

भारत की अब तक कि सबसे महंगी फ़िल्म “कल्कि 2898 AD” तो देख ही ली होगी। यह भारत की एकमात्र ऐसी फिल्म है जिसे समझना सबके बस की बात नही है। जिसे समझ मे आयी है वो इसकी तारीफ करते नही थक रहा है, और जिसे समझ नही आई है वो इसकी आलोचना करते नही थक रहा है। क्या ही कर सकते हैं ? सबकी अपनी अपनी समझ है। तो आज हम इसी फिल्म को समझने की कोशिश करेंगे, और साथ ही उन फैक्ट्स पर भी चर्चा करेंगे जिसे आपने जाने-अनजाने में मिस कर दिया होगा।

कहानी शुरू करने पहले यह जान लीजिए कि आखिर कल्कि 2898 AD का मतलब क्या है ?

तो ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु के पश्चात ही कलियुग का आरंभ हुआ। डायरेक्टर नाग अश्विन के अनुसार यह फ़िल्म महाभारत के 6000 साल बाद की कहानी है। तो अगर हम 6000 में से 2898 को माइनस करते हैं तो 3102 आता है, यानी 3102 BC, ये ठीक वही टाइमलाइन है जिस समय महाभारत हुआ था, यानी द्वापरयुग।

फ़िल्म की शुरुआत होती है 3102 BC यानी महाभारत के टाइमलाइन में, जहां हमे देखने को मिलता है कि कुरूक्षेत्र के युद्ध के दौरान अश्वत्थामा को भगवान कृष्ण ने क्रोधित होकर श्राप दे देते हैं, कि उन्हें अपनी मणि त्यागनी पड़ेगी, जो उनकी शक्तियों का स्रोत है। वो युद्ध में मिले घावों के साथ, घायल अवस्था मे कलियुग के अंत तक भटकते रहेंगे और मौत की भीख मांगते रहेंगे, जो उन्हें कभी नहीं मिलेगी। दरअसल भगवान कृष्ण के क्रोध की वजह ये थी कि पांडव कुल का अंत करने चले अश्वत्थामा ने अपने ब्रह्मास्त्र को, अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ की तरफ मोड़ दिया था। श्रीकृष्ण ने उत्तरा के पुत्र को तो बचा लिया मगर अश्वत्थामा को एक गर्भवती स्त्री को नुकसान पहुंचाने के लिए श्राप दे दिया।

इस फ़िल्म की कहानी अश्वत्थामा के किरदार को एक पश्चाताप का मौका देती है, जिसे गर्भवती स्त्री को नुकसान पहुंचाने के लिए शाप मिला, वो एक गर्भवती स्त्री की रक्षा करके ही अपनी मुक्ति पाएगा।

इसके बाद हमे सीधे 6000 साल बाद 2898 AD का टाइमलाइन दिखाया जाता है।
धरती मानव सभ्यता बहुत सारी तबाही झेल चुकी है और खत्म होने के कगार पर है। ये दुनिया टेक्नोलॉजी में तो बहुत एडवांस हो गई है, लेकिन प्राकृतिक संसाधन लगभग खत्म होने की कगार पर हैं। सर्वाइवल की इस जंग में लोग भावनाओ और नैतिकता को भूलकर केवल अपना अस्तित्व बचाने में लगे हुए हैं। इस महाप्रलय में बस एक ही शहर बचा है, काशी। जोकि अब बाउंटी हन्टर्स का अड्डा बन चुका है। सुप्रीम यासकीन नाम का एक दैवमानुष कॉम्प्लेक्स नाम के एक इनवर्टेड पैरामेडिकल मेगास्ट्रक्चर से पूरी दुनिया का भगवान बना बैठा है। वो चाहता है कि लोग उसे ही भगवान माने, उसकी पूजा करें।

वह प्रोजेक्ट K नाम के एक फर्टिलिटी प्रोग्राम पर काम कर रहा है। अब ये प्रोजेक्ट K, कल्कि है या कलि ? इसकी कोई जानकारी नही दी गई है। इस प्रोग्राम के तहत वह एक दैविक सीरम की तलाश में है जो उसे अमर बना दे। लेकिन यहां दिक्कत यह थी कि कोई भी फर्टाइल फीमेल 120 दिन से ज़्यादा ज़िंदा ही नही रह पाती थी। तभी उसे Sum-80 नाम के बारे पता चलता है जिसका गर्भवस्था-चक्र 150 दिन का हो गया था। कमांडर मानस उसके भ्रूण से उस सीरम को निकालने का काम कर ही रहा होता है, तभी दूर कहीं अश्वत्थामा की शक्तियां जागृत हो जाती हैं। उन्हें यह अहसास हो जाता है कि उनकी मुक्ति का समय आ गया है।

दीपिका पादुकोण को यहां पर SUM 80′ का टैग दिया गया है। जिसे हिंग्लिश में ‘सुम-80’ भी पढ़ सकते हैं। विष्णु पुराण के अनुसार, भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्कि की माता जी का नाम भी “सुमति” है।

अगले सीन में अश्वत्थामा, माता सुमति को शम्भाला लेकर जाते हैं। हिंदू और बौद्ध इतिहास के अनुसार शम्भाला एक ऐसी पौराणिक रहस्यमयी जगह है, जहां केवल पवित्र हृदय वाले, ज्ञान प्राप्त कर चुके लोग पाए जाते हैं। विष्णु पुराण में शंभाला को ही विष्णु के अवतार कल्कि का जन्मस्थान बताया गया है।
शम्भाला में जो विशालकाय वृक्ष देखने को मिलता है, वह अश्वत्थ वृक्ष है (पीपल का संस्कृत नाम)। कल्कि पुराण के अनुसार इसी वृक्ष के नीचे ही भगवान कल्कि का जन्म होगा।

इसी बीच सुप्रीम यासकीन को शम्भाला के बारे में पता चलता है, तो वह सुमति के ऊपर बाउंटी यानी कि इनाम घोषित कर देता है, और यहीं पर एंट्री होती है, काशी का सबसे फेमस बाउंटी हंटर की, भैरवा। वहां के लोगों के अनुसार उसे काशी का रक्षक माना जाता है। यहां पर ये बात कनेक्ट हो रही है कि असल मे भी काशी का रक्षक कालभैरव को ही माना जाता है।

जब भैरवा को पता चलता है कि Sum-80 यानी सुमति, एक रहस्यमयी शहर शम्भाला में है तो वह अपनी AI सूपरकार “बुज्जी” के साथ निकल पड़ता है। दरअसल भैरवा का एक ही सपना है, बस किसी तरह कॉम्प्लेक्स पहुँचना। जिसके लिए वो किसी भी हद तक जा सकता है।

यहां सुमति के लिए अश्वत्थामा और भैरवा में भीषण युद्ध होता है। अश्वत्थामा सुमति की रक्षा इसलिए कर रहे थे क्योंकि उनके गर्भ में भगवान कल्कि का वास था, जिससे उन्हें मुक्ति मिलने वाली थी। भैरवा सुमति के लिए इसलिए लड़ रहा था क्योंकि उसे कॉम्प्लेक्स में जाना था, जिससे उसकी जिंदगी बदलने वाली थी।

यहां हमे पता चलता है कि भैरवा, दानवीर कर्ण का पुनर्जन्म है। अब आप भी यही सोच रहे होंगे कि आखिर कलियुग में कर्ण कहाँ से आ गए ? जबकि वो तो अमर भी नही हैं ? तो फिर ये कौन सी नई कहानी को गढ़ा गया है ?

दरअसल भविष्य पुराण के अनुसार, महाभारत के युद्ध के पश्चात भगवान कृष्ण ने पांडवों को कलयुग में जन्म लेने का आशीर्वाद दिया था और साथ मे यह भी बताया था कि वो कलियुग में कहां, कब और कैसे जन्म लेंगे ?
अब चूंकि कर्ण भी माता कुंती के पुत्र और पांडवों के भाई थे, इसलिए उन्हें भी कलियुग में जन्म लेने का वरदान प्राप्त हुआ। वे पहले कलि का साथ देंगे, लेकिन कल्कि भगवान से मिलने के बाद उन्हें पिछले जन्म की सारी बातें याद आ जाएंगी। अगर आप ध्यान देंगे तो फ़िल्म में भी यही दिखाया गया है।
इसके बाद हम देखते हैं कि सुप्रीम यासकीन को सुमति के गर्भ के पल रहे कल्कि का एक बूंद सीरम मिल जाता है, जिसकी मदद से वो अपनी अलौकिक शक्तियों को हासिल कर लेता है। जिस गांडीव को आम इंसान छू भी नही सकता था, उसे अपनी बहुभुजाओं से आसानी से उठा लेता है। यानी इतना तो साफ है कि अब वह सच मे भगवान बन चुका है, क्योंकि उसमें कल्कि का अंश है। अगर ऐसा नही होता तो गांडीव को छूते ही वह भस्म हो गया होता। लेकिन ऐसा नही होता है।

यानी इतना तो साफ है कि अगले भाग में हमे कलि यानी सुप्रीम यासकीन और कल्कि के बीच एक भयानक युद्ध देखने को मिलने वाला है।
अब यहां सवाल यह आता है कि क्या कल्कि को रोका जा सकता है ? तो जी हां। बिल्कुल। कल्कि को रोकने का एक ही तरीका है ”टाइम ट्रैवेल”।

अब जैसा कि आपको पता ही है कि द्वापरयुग में भगवान कृष्ण की मृत्यू के पश्चात ही कलियुग का आरंभ हुआ था। तो ऐसा हो सकता है कि टाइम ट्रैवेल करके द्वापरयुग में जाकर किसी तरह भगवान कृष्ण की मृत्यु को रोक दे, तो कलियुग का आरंभ ही नही होगा। लेकिन इस तरह तो हमारा ही अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। इसलिए काल के चक्र से खिलवाड़ ना ही किया जाए तो बेहतर है। “एवेंजर्स एन्डगेम” इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण है।

तो उम्मीद करते हैं इस फ़िल्म को लेकर आपके नज़रिए में थोड़ा बदलाव तो आया ही होगा। अगर फिर भी आपको कही कोई सवाल हो तो उसे हमसे ज़रूर बताइएगा करिएगा।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *